लोगों पर एक साथ दो बीमारियों का छाया संकट

लोगों पर एक साथ दो बीमारियों का छाया संकट

सेहतराग टीम

मेडिकल जर्नल द लांसेट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार कम और मध्यम आय वाले देशों की विकास प्रक्रिया पर मोटापे और कुपोषण की दोधारी तलवार लटक रही है। इसका सबसे बड़ा कारण सेहतमंद भोजन की कमी है। रिपोर्ट के अनुसार करीब 130 देशों के एक तिहाई से ज्यादा लोगों पर यह संकट छाया हुआ है। सबसे बड़ी जिंताजनक बात यह है कि एक ही घर में ज्यादा मोटे और कुपोषित दोनों तरह के सदस्य मौजूद हैं। इन दोनों ही बीमारियों में समय से पहले मौत होने का खतरा होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के साथ तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मोटापे की समस्या केवल अमीर देशों में नहीं है और न ही कुपोषण की समस्या सिर्फ गरीब देशों में है। रिपोर्ट के अनुसार 14.9 करोड़ से ज्यादा बच्चों का सही ढंग से विकास नहीं हुआ है, बचपन में वजन बढ़ना और मोटापे की समस्या दुनिया में लगभग हर जगह है और गलत खानपान दुनिया भर के हर पांच मौत में एक के लिए जिम्मेदार है।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है, अगर कदम नहीं उठाए गए तो इसके कारण लोगों और समाज के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के विकास में आने वाले कई दशकों तक बाधा पड़ेगी। रिपोर्ट से पता चलता है कि गरीब देशों में यह समस्या सबसे ज्यादा बड़ी है। यहां भूख की समस्या तो पहले से ही थी अब मोटे लोगों की बढ़ती तादाद एक और समस्या बन कर सामने आ रही है। रिपोर्ट में सस्ते, भूख मिटाने वाले नमक, चीन और वसा से भरे भोजन के साथ ही काम पर, घर में या आने जाने के दौरान शारीरिक श्रम के खत्म या कम होने की ओर संकेत किया गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण यानी डीबीएम की वजह से कई देशों के 35 प्रतिशत घर इसकी चपेट में आ चुके हैं। कुछ देशों में यह सबसे ज्याद है।  जैसे- अजरबैजान, ग्वाटेमाला, मिस्र, कोमोरोस, साओ टोमे और प्रिंसिप आदि। इसके अलावा लगभग सभी देशों में बच्चों के विकास में कमी दिखने के साथ महिलाओं का वजन बढ़ने की भी बात सामने आई है।

रिपोर्ट के अनुसार बात करें तो इन सबके लिए पोषण और खान पान के सिस्टम में तेजी से आए बदलाव को जिम्मेदार माना गया है। लांसेट का कहना है कि इस चलन को बदलने के लिए बड़े सामाजिक बदलाव करने होंगे। सेहतमंद भोजन के लिए सब्सिडी बढ़ाने के साथ ही स्कूलों में पोषक भोजन और खाने के बारे में लोगों को शिक्षित करने जैसे कदम उठाने की जरूरत है। इसके साथ ही नवजात बच्चों को मां के दूध और इस जैसे पोषक विकल्पों के लिए जागरूकता लानी होगी।

 

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